MP News : टॉप 10 करोड़पती नेताओं में रीवा के दिव्यराज सिंह
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी हैं सूची में।
MP News : मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर नामांकन की प्रक्रिया चल रही है। नामांकन करने वाले नेता अपने संपत्ति का ब्यौरा चुनाव आयोग को आवेदन के समय ही सौंप रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार अगर टॉप 10 करोड़पति विधायकों की सूची बनाई जाए तो उसमें भाजपा के विजयराघवगढ़ विधायक संजय पाठक का नाम पहले नंबर पर है। रीवा के दिव्यराज भी करोड़पति की सूची में शामिल हैं। जबकि कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ टॉप 10 की सूची में 6वें स्थान पर हैं।
जानकारी के अनुसार टॉप 10 करोड़पति विधायकों की सूची में सबसे पहला नाम भाजपा के संजय पाठक का आता है। संजय पाठक के पास 226 करोड़ रुपए की संपत्ति है। इसी तरह दूसरे नंबर पर चैतन्य काश्यप 204 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। तीसरे नंबर पर संजय शुक्ला आते हैं उनके पास 139 करोड रुपए की संपत्ति है। वहीं चौथे नंबर पर संजय शर्मा 131 करोड़ संपत्ति के मालिक हैं। निलय डागा 127 करोड़ संपत्ति के साथ पाचवे नंबर पर हैं।
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ 124 करोड़ की संपत्ति के साथ छठवें नंबर पर आते हैं। इसी तरह सातवें नम्बर पर केपी सिंह 73 करोड़, आठवें नम्बर पर विशाल पटेल 69 करोड़ तथा नौवें नम्बर पर सुदेश राय 68 करोड़ रुपए के मालिक हैं। रीवा जिले के राजघराने के राजकुमार दिव्यराज सिंह टॉप 10 में 62 करोड़ के साथ 10 वे नंबर पर हैं।
ऐसे में अगर आम जनचर्चा पर ध्यान दें तो पता चलता है कि राजनीति कर रहे करोड़पति विधायक और मंत्री कब जनसेवा कर लेते हैं और कब अपना व्यापार कर इतने पैसे कमा लेते हैं यह आम जन की समझ में ना कभी आया है ना कभी आएगा। क्योंकि यह तो भीतर का खेल भी बताया जाता है जो किसी को नहीं पता। यह बात जरूर है कि राजनेता और व्यापारी बनने के बाद इनकी संपत्ति लगातार बढ़ती ही जाती है।
आज देश का दुर्भाग्य है कि गरीब दिनों दिन गरीब होता जा रहा है। और पूंजीपति की पूंजी में लगातार इजाफा होता जा रहा है। राजनीति की आड़ में लगातार सिस्टम और संपदा का दोहन हो रहा है। वहीं अगर इस कारोड़पति नेता सत्ता पक्ष के हैं तो फिर कहना ही क्या है।
आमजन के हालातों पर गौर करें तो पता चलता है कि भले ही सरकारी आंकड़े में यह बता दिया गया हो कि प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है। लेकिन हकीकत तो यह है कि सरकारी कर्मचारी के अलावा आमजन अभी भी उसी तरह हांसिए पर है। अगर प्रधानमंत्री आवास योजना न मिले तो गरीब की खपरैल मकान बनाने की क्षमता नही बची है।
बात अगर इशारों में की जाय तो शासकीय जांच एजेंसियां अपना काम तो करती हैं लेकिन राजनीतिक दबाव के तले स्वतंत्र होकर कोई निर्णायक काम नहीं हो पा रहा। यहां तक की राजनीतिक नेताओं के साथ मिली भगत कर कई बड़े व्यापारी भी अपना व्यापार दिन रात बढ़ा कर पूंजीपति बन रहे हैं।