विश्व का पहला सफेद बाघ मोहन, खेलता था फुटबॉल रखता था रविवार को उपवास
गोविंदगढ़ के किले में रखा गया था वह सफेद बाघ मोहन
MP rewa news : मध्य प्रदेश के रीवा जिले के राजघराने को पहला सफेद बाघ 1951 में सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र पनखोरा गांव के नजदीक जंगल में पाया गया था। उसका नाम रखा गया मोहन। रीवा महाराजा मार्तड सिंह ने सफेद बाघ को पड़कर गोविंदगढ़ किले में उसका लालन-पालन किया। और उससे करीबन 34 संताने हुई। इनमें से 21 संतान मोहन की तरह बिल्कुल सफेद थी। यह विदेश तक गई और एक समय ऐसा आया जब दुनिया को सफेद बाघ देने वाला रीवा जिला स्वयं ही सफेद बाघ विहीन हो गया। लेकिन बाद में काफी प्रयास के बाद वर्तमान समय में मुकुंदपुर टाइगर सफारी में सफेद बाघ वापस लाया गया है।
उनके संबंध में बताया जाता है कि महाराज मार्तड सिंह ने जंगल से पकड़ कर गोविंदगढ़ के किले में लाकर रख और इसका लालन-पालन किया। जब महाराज मार्तंड सिंह ने इसे पकड़ा था वह छोटा सावक था। महाराज मार्तंड सिंह स्वयं इसकी देखेरेख और प्रतिदिन की निगरानी की जानकारी लिया करते थे। आदमखोर जीव होने के बाद मोहन बहुत ही सात्विक था।
यहां तक कहते हैं कि मोहन उपवास यानी की व्रत रखा करता था। रविवार के दिन वह सिर्फ दूध का सेवन किया करता था। मोहन की मौत 1959 को हुई। उसकी मौत के बाद उसका कुनबा आगे बढ़ता रहा और पूरे विश्व में फैल गया। महाराजा मार्तंड सिंह सफेद बाघ मोहन के साथ फुटबॉल खेला करते थे। बताते हैं कि मोहन महाराज साहब के साथ मोहन बहुत अच्छा फुटबॉल खेला करता था ।
बताते हैं कि पहली संतान के रूप में सफेद बाघ मोहिनी, सुकेशी, रानी और राजा पैदा हुए थे। कुल मिलाकर मोहन से 34 संतान पैदा हुई जिसमें से 21 सफेद थी। राधा नमक बाघिन ने 14 बच्चे पैदा किया। वही सुकेसी नामक बाघिन से 13 बच्चे पैदा हुए थे। महाराजा ने चमेली को दिल्ली के चिड़ियाघर में दिया था। इसके बाद विराट नामक सफेद बाघ जो रीवा के गोविंदगढ़ में रह रहा था उसकी मौत हो गई। और इसके बाद रीवा सफेद बाघों से सूना हो गया।
रीवा के लोग यह जरूर कहते नजर आए कि उनके यहां से विश्व भर को सफेद बाघ मिला है। लेकिन देने वाले के हाथ ही खाली हो गए थे। ऐसे में सरकार के प्रयास से दोबारा सफेद बाघ व्हाइट टाइगर सफारी मुकुंदपुर लाया गया। आज रीवा भी सफेद बाघ की अपनी पहचान वापस पाने में सफल हुआ है।